Monday, March 27, 2017

यह दौर भी बीत जायेगा

राजा सोलोमन ने सपने में एक अंगूठी देखी और दुख के आवेग में अपने  सलाहकारों को उसे ढूंढ लाने के लिए कहा.

"जब मैं संतुष्टि का अनुभव करता हूँ तो मुझे दर लगता है की यह दिन  नहीं रहेंगे. और जब मैं संतुष्ट नहीं होता हूँ तो मुझे भय लगता है की मेरी तकलीफें सदा कायम रहेंगी. मुझे वह अंगूठी लाकर दो जिससे मेरा दुख दूर हो जाएगा." ऐसी मांग राजा ने रखी.

सोलोमन ने अपने सभी सलाहकारों को बाहर भेज दिया और फिर उनमे से एक सलाहकार जाकर एक बुज़ुर्ग सोनार से मिला जिसने एक सोने के कंगन पर उकेरा "यह दौर भी बीत जायेगा". जब राजा को अपनी अंगूठी मिली और उसने उस पर उकेरा गया वाक्य पढ़ा तो उसकी वेदना आनंद में परिवर्तित हो गई और आनंद दुख में, और उसके बाद वह समभाव में रहने लगा.

अब देखिये की ऐसा महान राजा भी खुद को संतुष्ट रखने में असमर्थ था. ख़ुशी होने पर वह दुख महसूस करता था. ख़ुशी होने पर वह दुख महसूस करता था, और जब दुखी होता था तो वह दुख महसूस नहीं करता था, क्योंकि वह आगे की राह देखने में असमर्थ था. इस कंगन ने उसके दुख को निष्क्रिय करने में भूमिका निभाई. लगातार कुछ न कुछ आस लगाए रखने के प्रयास में संतुष्ट रहने लगा. पहले वह सोचता था कि संतुष्टि केवल ऊपरी अनुभूति है जो उसकी विपुल संपत्ति से आयी थी, और जो अस्थायी थी, ऐसी स्थिति में उसकी संतुष्टि का भाव हमेशा के लिए नहीं रह सकता था. वास्तविक संतोष तो तभी मिल सकता है जब उसने अपनी संपत्ति के असली हेतु को पहचान.

स्रोत: अनजान




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